Atma-Bodha Lesson # 45 :
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आत्म-बोध के 45th श्लोक में आचार्यश्री एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं। यह विषय है की आत्मा का दर्शन और उसमे निष्ठा कब होगी। क्या हम सदैव आत्मा का ध्यान करें? आचार्य बोलते हैं कि नहीं, आत्मा का नहीं 'जीव' पर ध्यान दो। जीव किसको कहते हैं? ये कैसे उत्पन्न होता है? इसकी संकुचिताएँ कैसे आती हैं, और कैसे जाती हैं? वे कहते हैं की वस्तुतः जीव आत्मा को ठीक से न जानने के कारण एक भ्रान्ति मात्र होती है, और भ्रान्ति की समाप्ति से यह भी दूर हो जाता है, और उसके स्थान पर एक अनन्त सत्ता विद्यमान होती है - वो ब्रह्म है।
इस पाठ के प्रश्न :
१. हमें ध्यान में पहले आत्म-चिंतन करना चाहिए अथवा जीव पर विचार?
२. जीव किसको बोलते हैं?
३. जीव-भाव की समाप्ति कैसे होती है?
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