Atma-Bodha Lesson # 42 :
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आत्म-बोध के 42nd श्लोक में आचार्यश्री हमें निदिध्यासन रूपी ध्यान की प्रक्रिया को एक दृष्टांत से समझते हैं। वो दृष्टांत है अरणी का। किसी यज्ञ में अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए प्राचीन तरीका होता है - दो लकड़ियों के घर्षण और मंथन का। लकड़ियों के घर्षण से अग्नि प्रज्वलित होती है जिससे यज्ञ आदि कार्य संपन्न किये जाते हैं। दो लकड़ियां ऊपर और नीचे होती है और एक मथानी बीच में खड़ी होती है - जिसे किसी रस्सी आदि से अथवा हाथ से मथा जाता है। इसमें नीचे की लकड़ी को जीव भाव समझें और ऊपर को अपना ब्रह्म-स्वरूपता का लक्ष्य। बीच की खड़ी लकड़ी को वेदांत ज्ञान समझें। मंथन से जो ज्ञान रुपी अग्नि निकलती है वो हमारे अज्ञान रुपी संसार के ईंधन को जला देती है।
इस पाठ के प्रश्न :
१. अरणी के दृष्टांत को समझाएँ ?
२. जीव, ब्रह्म-भाव को कैसे प्राप्त करता है?
३. संसार का ईंधन क्या होता है ?
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