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01-15-16
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।1.16।।
पाञ्चजन्यम्, हृषीकेशः, देवदत्तम्, धनञ्जयः।
पौण्ड्रम्, दध्मौ, महाशङ्खम्, भीमकर्मा, वृकोदरः॥
अनन्तविजयम्, राजा, कुन्तीपुत्रः, युधिष्ठिरः।
नकुलः, सहदेवः, च, सुघौषमणिपुष्पकौ॥
पदम् | विवरणम् | पदम् | विवरणम् |
पाञ्चजन्यम् | अ. पुं. द्वि. एक. | हृषीकेशः | अ. पुं. प्र. एक. |
देवदत्तम् | अ. पुं. द्वि. एक. | धनञ्जयः | अ. पुं. प्र. एक. |
पौण्ड्रम् | अ. पुं. द्वि. एक. | दध्मौ | ध्म-पर. कर्तरि. लिट्. प्रपु. एक. |
महाशङ्खम् | अ. पुं. द्वि. एक. | भीमकर्मा | भीमकर्मन्-न. पुं. प्र. एक. |
वृकोदरः | अ. पुं. प्र. एक. | अनन्तविजयम् | अ. पुं. द्वि. एक. |
राजा | राजन्-न. पुं. प्र. एक. | कुन्तीपुत्रः | अ. पुं. प्र. एक. |
युधिष्ठिरः | अ. पुं. प्र. एक. | नकुलः | अ. पुं. प्र. एक. |
सहदेवः | अ. पुं. प्र. एक. | च | अव्ययम् |
सुघौषमणिपुष्पकौ | अ. पुं. द्वि. द्विव. |
पदम् | अर्थः | पदम् | अर्थः |
हृषीकेशः | श्रीकृष्णः | पाञ्चजन्यम् | तन्नामकम् |
धनञ्जयः | अर्जुनः | देवदत्तम् | तन्नामकम् |
भावकर्मा | भयङ्करकार्यकारी | वृकोदरः | भामः |
पौण्ड्रम् | तन्नामकम् | महाशङ्खम् | महाकारकं शङ्खम् |
कुन्तीपुत्रः | कुन्तीसुतः | राजा युधिष्ठिरः | महाराजः युधिष्ठिरः |
अनन्तविजयम् | तन्नामकम् | नकुलः सहदेवश्च | नकुलः सहदेवश्च |
सुघोषमणिपुष्पकौ | तन्नामकम् | दध्मौ | अधमत् |
हृषिकेशः पाञ्चजन्यं धनञ्जयः देवदत्तं भीमकर्मा वृकोदरः महाशङ्खं पौण्ड्रं कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठिरः अनन्तविजनं नकुलः सहदेवः च सुघोषमणिपुष्पकौ दध्मौ।
दध्मौ | |
कः दध्मौ? | हृषीकेशः दध्मौ। |
हृषीकेशः पुनश्च कः दध्मौ।? | हृषीकेशः धनञ्जयशच दध्मौ।। |
हृषीकेशः धनञ्जयः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः वृकोदरश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः कीदृशश्च वृकोदरः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः युधिष्ठरश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कीदृशश्च युधिष्ठरः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः युधिष्ठरः च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः पुनः कीदृशश्च कुन्तीपुत्रः युधिष्ठरः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलः सहदेवश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलः सहदेवश्च कं कं दध्मौ? | हृषीकेशः पाञ्चजन्यम्, धनञ्जयः देवदत्तम्, भीमकर्मा वृकोदरः पौण्ड्रं महाशङ्खम्, कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः अनन्तविजयम्, नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ दध्मौ। |
भगवान् श्रीकृष्णः स्वीयं पाञ्चजन्यम् अधमत्। अर्जुनः देवदत्तं नामकं स्वीयं पाञ्चजन्यम् अधमत्। भामस्तु भयङेकरणां कार्याणां करणे कुशलः। पौण्ड्रनामकः तस्य शङ्कोऽपि महान् एव। सः तम् अधमत्। युधिष्ठिरः अनन्तविजयनामकं शङ्खम् अधमत्। नकुलः सुघोषनामकं सहदेवः च मणिपुष्पकनामकं शङ्कम् अधमत्।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।1.16।।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशः | पाञ्चजन्यम् + हृषीकेशः | अनुस्वारसन्धिः |
हृषीकेशो देवदत्तं | हृषीकेशः + देवदत्तं | विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफ, उकारः, गुणः |
देवदत्तं धनञ्जयः | देवदत्तम् + धनञ्जयः | अनुस्वारसन्धिः |
पौण्ड्रं दध्मौ | पौण्ड्रम् + दध्मौ | अनुस्वारसन्धिः |
महाशङ्खं भीमकर्मा | महाशङ्खम् + भीमकर्मा | अनुस्वारसन्धिः |
अनन्तविजयं राजा | अनन्तविजयम् + राजा | अनुस्वारसन्धिः |
कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः | कुन्तीपुत्रः + युधिष्ठिरः | विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफ, उकारः, गुणः |
सहदेवश्च | सहदेवः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः) श्चुत्वम् |
हृषीकेशः | हृषीकाणाम् ईशः हृषीकाणीन्द्रियाण्याहुस्तेषामीशो यतो भवान्। हृषीकेशस्ततो विष्णो ख्यातो देवेषु केशव॥ – महाभरतम् | षष्ठीतत्पुरुषः। (हृषीकम् इन्द्रियम्) |
महाशङ्खम् | महान् शङखः महाशङ्खः, तम् | कर्मधारयः। |
वृकोधरः | वृकस्य उदरम् इव उदरं यस्य सः | बहुव्रीहिः। |
कुन्तीपुत्ररः | कुन्त्याः पुत्रः | षष्ठीतत्पुरुषः। |
युधिष्ठिरः | युधि स्थिरः | सपुतमीतत्पुरुषः। समासे सति षत्वम्। |
धनञ्जयः | धनं जयति इति धनञ्जयः सर्वाञ्जनपताञ्जित्वा वित्तमादाय केवलम्। मध्ये धनस्य तिष्ठामि तेनाहुर्मां धनञ्जयम्॥ – महाभारतम् | कर्तरि खश् उपपदसमासश्च। |
पाञ्चजन्यः | पञ्चजन + ञ्य (भावार्थे)। पञ्चजने भवः। सः तु पञ्चजनं हत्वा शङ्खं लेभे जनार्धनः। यः स देवमनुष्येषु पाञ्चजन्य इति श्रुतः॥ हरिवंशः -८९२७ |
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।1.17।।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।1.18।।
काश्यः, च, परमेश्वासः, शिखण्डी, च, महारथः।
धृष्टद्यूम्नः, विराटः, च, सात्यकिः, च, अपराजितः॥
द्रूपदः, द्रौपदेयाः, च, सर्वशः, पृथिवीपते।
सौभद्रः, च, महाबाहुः, शङ्खान्, दध्मुः, पृथक्, पृथक्॥
पदम् | विवरणम् | पदम् | विवरणम् |
काश्यः | अ. पुं. प्र. एक. | च | अव्ययम् |
परमेश्वासः | अ. पुं. प्र. एक. | शिखण्डी | शिखण्डिन्-न. पुं. प्र. एक. |
महारथः | ई. पुं. प्र. बहु. | धृष्टद्यूम्नः | न. पुं. प्र. एक. |
विराटः | अ. पुं. प्र. एक. | सात्यकिः | इ. पुं. प्र. एक. |
अपराजितः | अ. पुं. प्र. एक. | द्रूपदः | अ. पुं. प्र. एक. |
द्रौपदेयाः | अ. पुं. प्र. बहु. | सर्वशः | अव्ययम् |
पृथिवीपते | इ. पुं. सम्बो. एक. | सौभद्रः | अ. पुं. प्र. एक. |
महाबाहुः | उ. पुं. प्र. एक. | शङ्खान् | अ. पुं. द्वि. बहु. |
दध्मुः | ध्मा-पर. कर्तरि लिट्. प्रपु. एक. | पृथक् | अव्ययम् |
पदम् | अर्थः | पदम् | अर्थः |
पृथिवीपते | हे धृतराष्ट्र! | परमेष्वासः | परमधनुर्धरः |
काश्यः | काश्याः राजा | महारथः | योधानां दशसहस्रेण योद्धा |
शिखण्डी | शिखण्डी | धृष्टद्युम्नः | धृष्टद्युम्नः |
विराटः | विराटराजः | अपराजितः | पराजेतुम् अशक्यः |
सात्यकिः | सात्यकिः | द्रुपदः | द्रुपदः |
द्रौपदेयाः | द्रौपद्याः पुत्राः | महाबाहुः | महान्तौ बाहू यस्य सः |
सौभद्रः च | अभिमन्युः च | पृथक् पृथक् | अन्यान् अन्यान् |
शङ्खान् | शङ्खान् | सर्वशः | सर्वे |
दध्मुः | अधमन् |
पृथवीपते! परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च, पृथक् पृथक् शङ्खान् सर्वशः दध्मुः।
दध्मुः | |
के दध्मुः? | काश्यः, शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, सौभद्रः च दध्मुः। |
कीदृशः काश्यः, कीदृशः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, कीदृशः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, कीदृशः सौभद्रः च दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च दध्मुः। |
परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च कति दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च सर्वशः दध्मुः। |
परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च कान् सर्वशः दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च शङ्खान् सर्वशः दध्मुः। |
परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च कथं शङ्खान् सर्वशः दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च प्रथक् प्रथक् शङ्खान् सर्वशः दध्मुः। |
अस्मिन् वाक्ये सम्बोधनपदं किम्? | पृथवीपते। |
हे प्रथवीपते धृतराष्ट्र! युद्धार्थम् उपस्थितः काशिराजः महान् धनुर्धरः अस्ति। तादृशः काशिराजः महारथः द्रुपदपुत्रः धृष्टद्युम्नः, विराटराजः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदमहाराजः, द्रौपद्याः पुत्राः उपपाण्डवाः, महाबाहुः अभिमन्युश्चेति सर्वेऽपि प्रथक् प्रथक् शङ्खान् अधमन्।
काश्यश्च | काश्यः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
विराटश्च | विराटः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
धृष्टद्युम्नो विराटश्च | धृष्टद्युम्नः + विराटश्च | विसर्गसन्धिः (सकारः), रेफः, उकार, गुणः |
सात्यकिश्च | सात्यकिः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
सात्यकिश्चापराजितः | सात्यकिश्च + अपराजितः | सवर्णदीर्धसन्धिः |
द्रौपदेयाश्च | द्रौपदेयाः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च | द्रुपदः + द्रौपदेयाश्च | विसर्गसन्धिः (सकारः), रेफः, उकार, गुणः |
सौभद्रश्च | सौभद्रः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
पृथिवीपते | पृथिव्याः पतिः, तत्सम्बुद्धौ | षष्टितत्पुरुषः। |
परमेष्वासः | आस्ते अत्र इति आसः। इषोः आसः इष्वासः, धनुः इत्यर्थः। परमः इष्वासः यस्य सः। | बहुव्रीहिः। |
धृष्टुद्युम्नः | धृष्टं द्युम्नं येन सः | बहुव्रीहिः। |
अपराजितः | न पराचितः | नञ्-तत्पुरुषः। |
महाबाहुः | महन्तौ बाहुः यस्य सः | बहुव्रीहिः। |
काश्यः | काशि + ञ्यङ् (राजा इत्यर्थे)। काश्याः राजा। |
सात्यकिः | सत्यक + इञ् (अपत्यार्थे)। सत्यकस्य अपत्यं पुमान्। |
शिखण्डी | शिखण्ड + इनि (मतुबर्थे)। शिखण्डः चूडा अस्य अस्मिन् वा अस्ति। |
33 episod
01-15-16
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।1.16।।
पाञ्चजन्यम्, हृषीकेशः, देवदत्तम्, धनञ्जयः।
पौण्ड्रम्, दध्मौ, महाशङ्खम्, भीमकर्मा, वृकोदरः॥
अनन्तविजयम्, राजा, कुन्तीपुत्रः, युधिष्ठिरः।
नकुलः, सहदेवः, च, सुघौषमणिपुष्पकौ॥
पदम् | विवरणम् | पदम् | विवरणम् |
पाञ्चजन्यम् | अ. पुं. द्वि. एक. | हृषीकेशः | अ. पुं. प्र. एक. |
देवदत्तम् | अ. पुं. द्वि. एक. | धनञ्जयः | अ. पुं. प्र. एक. |
पौण्ड्रम् | अ. पुं. द्वि. एक. | दध्मौ | ध्म-पर. कर्तरि. लिट्. प्रपु. एक. |
महाशङ्खम् | अ. पुं. द्वि. एक. | भीमकर्मा | भीमकर्मन्-न. पुं. प्र. एक. |
वृकोदरः | अ. पुं. प्र. एक. | अनन्तविजयम् | अ. पुं. द्वि. एक. |
राजा | राजन्-न. पुं. प्र. एक. | कुन्तीपुत्रः | अ. पुं. प्र. एक. |
युधिष्ठिरः | अ. पुं. प्र. एक. | नकुलः | अ. पुं. प्र. एक. |
सहदेवः | अ. पुं. प्र. एक. | च | अव्ययम् |
सुघौषमणिपुष्पकौ | अ. पुं. द्वि. द्विव. |
पदम् | अर्थः | पदम् | अर्थः |
हृषीकेशः | श्रीकृष्णः | पाञ्चजन्यम् | तन्नामकम् |
धनञ्जयः | अर्जुनः | देवदत्तम् | तन्नामकम् |
भावकर्मा | भयङ्करकार्यकारी | वृकोदरः | भामः |
पौण्ड्रम् | तन्नामकम् | महाशङ्खम् | महाकारकं शङ्खम् |
कुन्तीपुत्रः | कुन्तीसुतः | राजा युधिष्ठिरः | महाराजः युधिष्ठिरः |
अनन्तविजयम् | तन्नामकम् | नकुलः सहदेवश्च | नकुलः सहदेवश्च |
सुघोषमणिपुष्पकौ | तन्नामकम् | दध्मौ | अधमत् |
हृषिकेशः पाञ्चजन्यं धनञ्जयः देवदत्तं भीमकर्मा वृकोदरः महाशङ्खं पौण्ड्रं कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठिरः अनन्तविजनं नकुलः सहदेवः च सुघोषमणिपुष्पकौ दध्मौ।
दध्मौ | |
कः दध्मौ? | हृषीकेशः दध्मौ। |
हृषीकेशः पुनश्च कः दध्मौ।? | हृषीकेशः धनञ्जयशच दध्मौ।। |
हृषीकेशः धनञ्जयः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः वृकोदरश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः कीदृशश्च वृकोदरः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः युधिष्ठरश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कीदृशश्च युधिष्ठरः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः युधिष्ठरः च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः पुनः कीदृशश्च कुन्तीपुत्रः युधिष्ठरः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलः पुनश्च कः दध्मौ? | हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलः सहदेवश्च दध्मौ। |
हृषीकेशः धनञ्जयः भीमकर्मा वृकोदरः कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः नकुलः सहदेवश्च कं कं दध्मौ? | हृषीकेशः पाञ्चजन्यम्, धनञ्जयः देवदत्तम्, भीमकर्मा वृकोदरः पौण्ड्रं महाशङ्खम्, कुन्तीपुत्रः राजा युधिष्ठरः अनन्तविजयम्, नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ दध्मौ। |
भगवान् श्रीकृष्णः स्वीयं पाञ्चजन्यम् अधमत्। अर्जुनः देवदत्तं नामकं स्वीयं पाञ्चजन्यम् अधमत्। भामस्तु भयङेकरणां कार्याणां करणे कुशलः। पौण्ड्रनामकः तस्य शङ्कोऽपि महान् एव। सः तम् अधमत्। युधिष्ठिरः अनन्तविजयनामकं शङ्खम् अधमत्। नकुलः सुघोषनामकं सहदेवः च मणिपुष्पकनामकं शङ्कम् अधमत्।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।1.16।।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशः | पाञ्चजन्यम् + हृषीकेशः | अनुस्वारसन्धिः |
हृषीकेशो देवदत्तं | हृषीकेशः + देवदत्तं | विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफ, उकारः, गुणः |
देवदत्तं धनञ्जयः | देवदत्तम् + धनञ्जयः | अनुस्वारसन्धिः |
पौण्ड्रं दध्मौ | पौण्ड्रम् + दध्मौ | अनुस्वारसन्धिः |
महाशङ्खं भीमकर्मा | महाशङ्खम् + भीमकर्मा | अनुस्वारसन्धिः |
अनन्तविजयं राजा | अनन्तविजयम् + राजा | अनुस्वारसन्धिः |
कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः | कुन्तीपुत्रः + युधिष्ठिरः | विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफ, उकारः, गुणः |
सहदेवश्च | सहदेवः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः) श्चुत्वम् |
हृषीकेशः | हृषीकाणाम् ईशः हृषीकाणीन्द्रियाण्याहुस्तेषामीशो यतो भवान्। हृषीकेशस्ततो विष्णो ख्यातो देवेषु केशव॥ – महाभरतम् | षष्ठीतत्पुरुषः। (हृषीकम् इन्द्रियम्) |
महाशङ्खम् | महान् शङखः महाशङ्खः, तम् | कर्मधारयः। |
वृकोधरः | वृकस्य उदरम् इव उदरं यस्य सः | बहुव्रीहिः। |
कुन्तीपुत्ररः | कुन्त्याः पुत्रः | षष्ठीतत्पुरुषः। |
युधिष्ठिरः | युधि स्थिरः | सपुतमीतत्पुरुषः। समासे सति षत्वम्। |
धनञ्जयः | धनं जयति इति धनञ्जयः सर्वाञ्जनपताञ्जित्वा वित्तमादाय केवलम्। मध्ये धनस्य तिष्ठामि तेनाहुर्मां धनञ्जयम्॥ – महाभारतम् | कर्तरि खश् उपपदसमासश्च। |
पाञ्चजन्यः | पञ्चजन + ञ्य (भावार्थे)। पञ्चजने भवः। सः तु पञ्चजनं हत्वा शङ्खं लेभे जनार्धनः। यः स देवमनुष्येषु पाञ्चजन्य इति श्रुतः॥ हरिवंशः -८९२७ |
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।1.17।।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।1.18।।
काश्यः, च, परमेश्वासः, शिखण्डी, च, महारथः।
धृष्टद्यूम्नः, विराटः, च, सात्यकिः, च, अपराजितः॥
द्रूपदः, द्रौपदेयाः, च, सर्वशः, पृथिवीपते।
सौभद्रः, च, महाबाहुः, शङ्खान्, दध्मुः, पृथक्, पृथक्॥
पदम् | विवरणम् | पदम् | विवरणम् |
काश्यः | अ. पुं. प्र. एक. | च | अव्ययम् |
परमेश्वासः | अ. पुं. प्र. एक. | शिखण्डी | शिखण्डिन्-न. पुं. प्र. एक. |
महारथः | ई. पुं. प्र. बहु. | धृष्टद्यूम्नः | न. पुं. प्र. एक. |
विराटः | अ. पुं. प्र. एक. | सात्यकिः | इ. पुं. प्र. एक. |
अपराजितः | अ. पुं. प्र. एक. | द्रूपदः | अ. पुं. प्र. एक. |
द्रौपदेयाः | अ. पुं. प्र. बहु. | सर्वशः | अव्ययम् |
पृथिवीपते | इ. पुं. सम्बो. एक. | सौभद्रः | अ. पुं. प्र. एक. |
महाबाहुः | उ. पुं. प्र. एक. | शङ्खान् | अ. पुं. द्वि. बहु. |
दध्मुः | ध्मा-पर. कर्तरि लिट्. प्रपु. एक. | पृथक् | अव्ययम् |
पदम् | अर्थः | पदम् | अर्थः |
पृथिवीपते | हे धृतराष्ट्र! | परमेष्वासः | परमधनुर्धरः |
काश्यः | काश्याः राजा | महारथः | योधानां दशसहस्रेण योद्धा |
शिखण्डी | शिखण्डी | धृष्टद्युम्नः | धृष्टद्युम्नः |
विराटः | विराटराजः | अपराजितः | पराजेतुम् अशक्यः |
सात्यकिः | सात्यकिः | द्रुपदः | द्रुपदः |
द्रौपदेयाः | द्रौपद्याः पुत्राः | महाबाहुः | महान्तौ बाहू यस्य सः |
सौभद्रः च | अभिमन्युः च | पृथक् पृथक् | अन्यान् अन्यान् |
शङ्खान् | शङ्खान् | सर्वशः | सर्वे |
दध्मुः | अधमन् |
पृथवीपते! परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च, पृथक् पृथक् शङ्खान् सर्वशः दध्मुः।
दध्मुः | |
के दध्मुः? | काश्यः, शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, सौभद्रः च दध्मुः। |
कीदृशः काश्यः, कीदृशः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, कीदृशः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, कीदृशः सौभद्रः च दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च दध्मुः। |
परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च कति दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च सर्वशः दध्मुः। |
परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च कान् सर्वशः दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च शङ्खान् सर्वशः दध्मुः। |
परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च कथं शङ्खान् सर्वशः दध्मुः? | परमेश्वासः काश्यः, महारथः शिखण्डी, धृष्टद्युम्नः, विराटः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदः, द्रौपदेयाः, महाबाहुः सौभद्रः च प्रथक् प्रथक् शङ्खान् सर्वशः दध्मुः। |
अस्मिन् वाक्ये सम्बोधनपदं किम्? | पृथवीपते। |
हे प्रथवीपते धृतराष्ट्र! युद्धार्थम् उपस्थितः काशिराजः महान् धनुर्धरः अस्ति। तादृशः काशिराजः महारथः द्रुपदपुत्रः धृष्टद्युम्नः, विराटराजः, अपराजितः सात्यकिः, द्रुपदमहाराजः, द्रौपद्याः पुत्राः उपपाण्डवाः, महाबाहुः अभिमन्युश्चेति सर्वेऽपि प्रथक् प्रथक् शङ्खान् अधमन्।
काश्यश्च | काश्यः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
विराटश्च | विराटः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
धृष्टद्युम्नो विराटश्च | धृष्टद्युम्नः + विराटश्च | विसर्गसन्धिः (सकारः), रेफः, उकार, गुणः |
सात्यकिश्च | सात्यकिः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
सात्यकिश्चापराजितः | सात्यकिश्च + अपराजितः | सवर्णदीर्धसन्धिः |
द्रौपदेयाश्च | द्रौपदेयाः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च | द्रुपदः + द्रौपदेयाश्च | विसर्गसन्धिः (सकारः), रेफः, उकार, गुणः |
सौभद्रश्च | सौभद्रः + च | विसर्गसन्धिः (सकारः), श्चुत्वम् |
पृथिवीपते | पृथिव्याः पतिः, तत्सम्बुद्धौ | षष्टितत्पुरुषः। |
परमेष्वासः | आस्ते अत्र इति आसः। इषोः आसः इष्वासः, धनुः इत्यर्थः। परमः इष्वासः यस्य सः। | बहुव्रीहिः। |
धृष्टुद्युम्नः | धृष्टं द्युम्नं येन सः | बहुव्रीहिः। |
अपराजितः | न पराचितः | नञ्-तत्पुरुषः। |
महाबाहुः | महन्तौ बाहुः यस्य सः | बहुव्रीहिः। |
काश्यः | काशि + ञ्यङ् (राजा इत्यर्थे)। काश्याः राजा। |
सात्यकिः | सत्यक + इञ् (अपत्यार्थे)। सत्यकस्य अपत्यं पुमान्। |
शिखण्डी | शिखण्ड + इनि (मतुबर्थे)। शिखण्डः चूडा अस्य अस्मिन् वा अस्ति। |
33 episod
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