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Pauranik Kathayen

Audio Pitara by Channel176 Productions

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Bulanan
 
Aaj hum lekar aaye hai iss baar aapke liye “Pauranik kathayen’’ jahan aap sunenge hindu Dharm ke Devi-devtaon ke bare main, aur janenge unse judi kuch adbhut kahaniyaan, aur sath hi sath samjhenge unka mahatva humarein jeevan main. Toh abhi shuru kariye sunna aur janiye humare devtraaon ke bare main visaar main. Stay Updated on our shows at audiopitara.com and follow us on Instagram and YouTube @audiopitara Credits - Audio Pitara Team
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Is podcast me main aapko Urdu Hindi ki Khaniyan Qisse sunata hun, Sher o Shayri Sunata hun. Available on all major podcast apps. Send me your suggestions and comments at BaadeSaba2020@gmail.com
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Pratinidhi Kahaniyan : Ismat Chugtai

Audio Pitara by Channel176 Productions

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Paish hai aapke liye brand new series ‘’Pratinidhi kahaniyan’’ jo likhi gayi hain ek bahut hi jaani-maani lekhika, upanyaskar,aur bahut hi achhi film nirmata Ismat Chugtai dwara. Iss series main honge 14 interesting episodes jisme aap janenge muslim dharm ke bare main,lekhika ke jeewan ke baare main aur bhi bahut kuch khaas, toh rukna kisliye? Shuru kariye sari sunana or janiye Ismat Chugtai ke bare main sirf ‘’Audio Pitara’’ par. Stay Updated on our shows at audiopitara.com and follow us on ...
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Chanakya Neeti (Sutra Sahit)

Audio Pitara by Channel176 Productions

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This audiobook is a compilation of teachings by Chanakya, a prominent figure in ancient Indian literature. Among the numerous works of ethics literature in Sanskrit, Chanakya Neeti holds a significant place. It provides practical advice in a succinct style to lead a happy and successful life. Its main focus is to impart practical wisdom for every aspect of life. It emphasizes values like righteousness, culture, justice, peace, education, and the overall progress of human life. This book beau ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Hi Friends, Main Anil hun aur aapka apne Podcast channel pe swagat karta hun. Isse channel ke madhyam se main apne dil ke kareeb jo kahaaniyaan hai wo aapke dil tak pahuchane ki koshish karunga, to chaliye mere saath dil ko chu leni wali kahaniyon mein bane rehne ke liye isse channel ko subscribe karein. Welcome to my Podcast chanel, Here, you will find a treasure trove of captivating tales, woven with creativity and brought to life through the power of storytelling. From epic adventures to ...
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Hello, Welcome to our Voice of India Post (VOI Post) Podcast Channel. On this Podcast Channel, we bring you all the very Latest and Breaking News, which is factually correct and unbiased. Our main goal is to make sure that you're up-to-date with all the important informations, which are happening in your own city or anywhere in the world. We hope you'll find all our efforts helpful. So stay tuned with us.
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Acharya Chanakya's knowledge is still relevant in this rapidly changing world. We can learn a lot from Chanakya Neeti Shastra which is the main theme of this podcast. Trying to understand how his ideas can be implemented in today's world. स तेजी से बदलती दुनिया में आचार्य चाणक्य का ज्ञान आज भी प्रासंगिक है। हम चाणक्य नीती शशत्र से बहुत कुछ सीख सकते हैं जो इस पॉडकास्ट का मुख्य विषय है। यह समझने की कोशिश की जा रही है कि उनके विचारों को आज की दुनिया में कैसे लागू किया जा सकता है ।
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Kai prem kahaniyan sunte aaye hain hum ab tak lekin jisse aap sambhawatah is srishti ki pratham prem kahaani kah sakte hain Wo hai Shiv aur Shakti ki Prem Katha…. Prem, samarpan, virah, peeda, tapasya, pareeksha, pratigya jaise jaane kitne bhaavon ko sametein Shiv aur Shakti ke ek doosre mein samahit hokar ardhnareeshwar swaroop tak pahunchne ki is yatra ne srishti ke har prani ke liye prem ka sabse mahantam, sabse pawitra aur adarsh roop prastut kiya Shiv aur Shakti ki isi prem kahani ko le ...
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Dheeraj Kochhar

Dheeraj Kochhar

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कारीगर हूं साहेब शब्दों की मिट्टी से महफ़िल सजाता हूँ...! किसी को बेकार... किसी को लाजवाब नज़र आता हूं...!
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Baba Present Session #1 क़भी हमें भी सुना करिए..! Hindi Podcast..! Ft.Shubham Gawande. Producer : Shubham Gawande Content Writer : Shubham Gawande Please Listen.... Comment, Like, Share & also Subscribe Brown Baba Thank You For Listening
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Gyanyog By Swami Vivekanand

Audio Pitara by Channel176 Productions

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“Gyanyog” by Swami Vivekanand ek aadhyatmik marg hai jismein aatma vikas ko kendrit kiya gaya hai. Iss series ke through aap samjhenge apne asli swaroop aur akrenge ekta ka anubhav.Toh der kis baat ki abhi shuru kariye sunana Gyanyog only on “Audio Pitara”. #audiopitara #sunnazaroorihai #spirituality #growth #knowledge #human #growth #gyanyog #divine #book #audiobook #religion #hinduism
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Kahani Train

Nayi Dhara Radio

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कहानी ट्रेन यानी बच्चों की कहानियाँ, सीधे आपके फ़ोन तक। यह पहल है आज के दौर के बच्चों को साहित्य और किस्से कहानियों से जोड़ने की। प्रथम, रेख़्ता व नई धारा की प्रस्तुति।
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Jobs Jankari

livehindustan - HT Smartcast

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जॉब्स, एग्जाम और रिजल्ट से जुड़ी ताजा खबरें, हायर एजुकेशन, स्कूल एजुकेशन और नौकरी तलाश रहे युवाओं के लिए करियर में अच्छा करने के टिप्स, अपना काम शुरू करने के टिप्स, बिजनेस आगे बढ़ाने के टिप्स बताएँगे लाइव हिंदुस्तान के चीफ़ कंटेंट क्रिएटर, पंकज विजय।आप सुन रहे हैं एच टी स्मार्टकास्ट और ये है लाइव हिंदुस्तान प्रोडक्शन |
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Gaa ke Bajaana is RJ Kaavya’s fitrat...and he does it to perfection in this segment. Every day he makes a parody on the flavour of the day. It’s a very popular segment and listeners often call to suggest the topic which needs to be highlighted on Jhampak Item!
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Delhi-NCR ki Khabrein

livehindustan - HT Smartcast

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Mingguan+
 
'दिल्ली - एनसीआर की खबरें' पॉडकास्ट में विभिन्न पार्टियों की राजनीतिक गतिविधियों, महत्वपूर्ण घटनाओं और अपराध के मामलों की गहराई से ख़बरें पेश की जाती हैं। यह पॉडकास्ट न सिर्फ ख़बरों की बखूबी व्याख्या करता है, बल्कि उनके पीछे की राजनीतिक, सामाजिक और मानसिक सोच की भी निष्पक्ष जानकारी देता है
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नमस्ते दोस्तों! समीर सावन यहाँ हैं, आपके पसंदीदा पॉडकास्ट पर स्वागत करते हैं। हम इस पॉडकास्ट में अनगिनत किस्सों का साझा करेंगे, जो आपकी दिनचर्या को महसूस कराएंगे, आपके मन को सुकून देंगे, और आपके जीवन को और भी रंगीन बनाएंगे। हमारे पॉडकास्ट में आपको मिलेगा: Motivational कहानियाँ: जो आपकी मोटिवेशन और सोच को प्रेरित करेंगी। Love स्टोरीज: कैसे बनाएं अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड को इम्प्रेस? दर्द की बातें: हम साथ हैं आपके दुखों और सुखों में। शायरी: जब शब्द दिल से निकलते हैं, तो वे सच्ची भावनाओं को ...
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गाँव गया था मैं | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी गाँव गया था मैं मेरे सामने कल्हारे हुए चने-सा आया गाँव अफसर नहीं था मैं न राजधानी का जबड़ा मुझे स्वाद नहीं मिला युवतियों के खुले उरोजों और विवश होंठों में अँधेरे में ढिबरी- सा टिंमटिमा रहा था गाँव उड़े हुए रंग-सा पुँछे हुए सिंदूर-सा सूखे कुएँ-सा जली हुई रोटी - सा हँड़िया में खदबदाते कोदौ के दाने-सा गाँव बतिय…
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भीगना | प्रशांत पुरोहित जब सड़क इतनी भीगी है तो मिट्टी कितनी गीली होगी, जब बाप की आँखें नम हैं, तो ममता कितनी सीली होगी। जेब-जेब ढूँढ़ रहा हूँ माचिस की ख़ाली डिब्बी लेकर, किसी के पास तो एक अदद बिल्कुल सूखी तीली होगी। कोई चाहे ऊपर से बाँटे या फिर नीचे से शुरू करे, बीच वाला फ़क़त हूँ मैं, जेब मेरी ही ढीली होगी। ना रहने को ना कहने को, मैं कभी सड़क पर …
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जीवन | अज्ञेय चाबुक खाए भागा जाता सागर-तीरे मुँह लटकाए मानो धरे लकीर जमे खारे झागों की— रिरियाता कुत्ता यह पूँछ लड़खड़ाती टांगों के बीच दबाए। कटा हुआ जाने-पहचाने सब कुछ से इस सूखी तपती रेती के विस्तार से, और अजाने-अनपहचाने सब से दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन उस ठण्डे पारावार से!Oleh Nayi Dhara Radio
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वापसी | अशोक वाजपेयी जब हम वापस आएँगे तो पहचाने न जाएँगे- हो सकता है हम लौटें पक्षी की तरह और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर घोसला बनाएँ तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो ! या फिर थोड़ी-सी बारिश के बाद तुम्हारे घर के सामने छा गई हरियाली की तरह वापस आएँ हम जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें पर तुम जान नहीं पा…
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ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे | फ़राज़ ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे तू बहुत देर से मिला है मुझे हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ कत्ल होने का हौसला है मुझे दिल धड़कता नहीं सुलगता है वो जो ख़्वाहिश थी, आबला है मुझे कौन जाने कि चाहतों में फ़राज़ …
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पुकार | केदारनाथ अग्रवाल ऐ इन्सानों! आँधी के झूले पर झूलो आग बबूला बन कर फूलो कुरबानी करने को झूमो लाल सवेरे का मूँह चूमो ऐ इन्सानों ओस न चाटो अपने हाथों पर्वत काटो पथ की नदियाँ खींच निकालो जीवन पीकर प्यास बुझालो रोटी तुमको राम न देगा वेद तुम्हारा काम न देगा जो रोटी का युद्ध करेगा वह रोटी को आप वरेगा!…
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वो पेड़ | शशिप्रभा तिवारी तुमने घर के आंगन में आम के गाछ को रोपा था तुम उसी के नीचे बैठ कर समय गुज़ारते थे उसकी छांव में लोगों के सुख दुख सुनते थे उस पेड़ के डाल के पत्ते उसके मंजर उसके टिकोरे उसके कच्चे पक्के फल सभी तुमसे बतियाते थे जब तुम्हारा मन होता अपने हाथ से उठाकर किसी के हाथ में आम रखते कहते इसका स्वाद अनूठा है वह पेड़ किसी को भाता था किसी क…
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दुआ सब करते आए हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी दुआ सब करते आए हैं दुआ से कुछ हुआ भी हो दुखी दुनिया में बन्दे अनगिनत कोई ख़ुदा भी हो कहाँ वो ख़ल्वतें दिन रात की और अब ये आलम है। कि जब मिलते हैं दिल कहता है कोई तीसरा भी हो ये कहते हैं कि रहते हो तुम्हीं हर दिल में दुख बन कर ये सुनते हैं तुम्हीं दुनिया में हर दुख की दवा भी हो तो फिर क्या इश्क़ दुनिया में कहीं का…
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प्यार में चिड़िया | कुलदीप कुमार एक चिड़िया अपने नन्हे पंखों में भरना चाहती है आसमान वह प्यार करती है आसमान से नहीं अपने पंखों से एक दिन उसके पंख झड़ जायेंगे और वह प्यार करना भूल जायेगी भूल जायेगी वह अन्धड़ में घोंसले को बचाने के जतन बच्चों को उड़ना सिखाने की कोशिशें याद रहेगा सिर्फ़ पंखों के साथ झड़ा आसमान…
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कोई हँस रहा है कोई रो रहा है | अकबर इलाहाबादी कोई हँस रहा है कोई रो रहा है कोई पा रहा है कोई खो रहा है कोई ताक में है किसी को है गफ़लत कोई जागता है कोई सो रहा है कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई कोई बीज उम्मीद के बो रहा है इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर' यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा हैOleh Nayi Dhara Radio
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लड़की ने डरना छोड़ दिया | डॉ श्यौराज सिंह बेचैन लड़की ने डरना छोड़ दिया अक्षर के जादू ने उस पर असर बड़ा बेजोड़ किया, चुप्पा रहना छोड़ दिया, लड़की ने डरना छोड़ दिया। हंसकर पाना सीख लिया, रोना-पछताना छोड़ दिया। बाप को बोझ नहीं होगी वह, नहीं पराया धन होगी लड़के से क्यों- कम होगी, वो उपयोगी जीवन होगी। निर्भरता को छोड़ेगी, जेहनी जड़ता को तोड़ेगी समता मूल्…
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दूसरे लोग | मंगलेश डबराल दूसरे लोग भी पेड़ों और बादलों से प्यार करते हैं वे भी चाहते हैं कि रात में फूल न तोड़े जाएँ उन्हें भी नहाना पसन्द है एक नदी उन्हें सुन्दर लगती है दूसरे लोग भी मानवीय साँचों में ढले हैं थके-मांदे वे शाम को घर लौटना चाहते हैं। जो तुम्हारी तरह नहीं रहते वे भी रहते हैं यहाँ अपनी तरह से यह प्राचीन नगर जिसकी महिमा का तुम बखान करत…
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वह चेहरा | कुलदीप कुमार आज फिर दिखीं वे आँखें किसी और माथे के नीचे वैसी ही गहरी काली उदास फिर कहीं दिखे वे सांवले होंठ अपनी ख़ामोशी में अकेले किन्हीं और आँखों के तले झलकी पार्श्व से वही ठोड़ी दौड़कर बस पकड़ते हुए देखे वे केश लाल बत्ती पर रुके-रुके अब कभी नहीं दिखेगा वह पूरा चेहरा?Oleh Nayi Dhara Radio
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तुम्हारी कविता | प्रशांत पुरोहित तुम्हारी कविता में उसकी काली आँखें थीं- कालिमा किसकी- पुतली की, भँवों की, कोर की, या काजल-घुले आँसुओं की झिलमिलाती झील की? तुम्हारी ग़ज़ल में उसकी घनी ज़ुल्फ़ें थीं— ज़ुल्फ़ें कैसीं- ललाट लहरातीं, कांधे किल्लोलतीं, कमर डोलतीं, या पसीने-पगी पेशानी पे पसरतीं, बट खोलतीं? तुम्हारी नज़्म में उसकी आवाज़ थी - आवाज़ कैसी- ग…
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नदियाँ | आलोक धन्वा इछामती और मेघना महानंदा रावी और झेलम गंगा गोदावरी नर्मदा और घाघरा नाम लेते हुए भी तकलीफ़ होती है उनसे उतनी ही मुलाक़ात होती है जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं और उस समय भी दिमाग कितना कम पास जा पाता है दिमाग तो भरा रहता है लुटेरों के बाज़ार के शोर से।Oleh Nayi Dhara Radio
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पानी एक रोशनी है। केदारनाथ सिंह इन्तज़ार मत करो जो कहना हो कह डालो क्योंकि हो सकता है फिर कहने का कोई अर्थ न रह जाए सोचो जहाँ खड़े हो, वहीं से सोचो चाहे राख से ही शुरू करो मगर सोचो उस जगह की तलाश व्यर्थ है। जहाँ पहुँचकर यह दुनिया एक पोस्ते के फूल में बदल जाती है नदी सो रही है उसे सोने दो उसके सोने से दुनिया के होने का अन्दाज़ मिलता है। पूछो चाहे जि…
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माँ | उत्तिमा केशरी माँ आसनी पर बैठकर जब एकाकी होकर बाँचती है रामायण तब उनके स्निग्ध ज्योतिर्मय नयन भीग उठते हैं बार-बार । माँ जब ज्योत्सना भरी रात्रि में सुनाती है अपने पुरखों के बारे में तो उनकी विकंपित दृष्टि ठहर जाती है कुछ पल के लिए मानो सुनाई पड़ रही हो एक आर्तनाद ! माँ जब सोती है धरती पर सुजनी बिछाकर तब वह ढूँढ़ रही होती है अपनी ही परछाई जिस…
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अँधेरे की भी होती है एक व्यवस्था | अनुपम सिंह अँधेरे की भी होती है एक व्यवस्था चीज़ें गतिमान रहती हैं अपनी जगहों पर बादल गरजते हैं कहीं टूट पड़ती हैं बिजलियाँ बारिश अँधेरे में भी भिगो देती है पेड़ पत्तियों से टपकता पानी सुनाई देता है अँधेरे के आईने में देखती हूँ अपना चेहरा तुम आते तो दिखाई देते हो बस! ख़त्म नहीं होतीं दूरियाँ आँसू ढुलक जाते हैं गालो…
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अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और | फ़राज़ अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और उस कू-ए-मलामत में गुज़रते कोई दिन और रातों के तेरी यादों के खुर्शीद उभरते आँखों में सितारे से उभरते कोई दिन और हमने तुझे देखा तो किसी और को ना देखा ए काश तेरे बाद गुज़रते कोई दिन और राहत थी बहुत रंज में हम गमतलबों को तुम और बिगड़ते तो संवरते कोई दिन और गो तर्के-तअल्लुक…
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वह जन मारे नहीं मरेगा | केदारनाथ अग्रवाल जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है, तूफानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है, जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है, जो रवि के रथ का घोड़ा है, वह जन मारे नहीं मरेगा, नहीं मरेगा!! जो जीवन की आग जलाकर आग बना है, फौलादी पंजे फैलाये नाग बना है, जिसने शोषण को तोड़ा, शासन मोड़ा है, जो युग के रथ का घोड़ा है, वह जन मारे नहीं मर…
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माँ की ज़िन्दगी | सुमन केशरी चाँद को निहारती कहा करती थी माँ वे भी क्या दिन थे जब चाँदनी के उजास में जाने तो कितनी बार सीए थे मैंने तुम्हारे पिताजी का कुर्ते काढ़े थे रूमाल अपनी सास-जिठानी की नज़रें बचा के अपने गालों की लाली छिपाती वे झट हाज़िर कर देती सूई-धागा और धागा पिरोने की बाज़ी लगाती हरदम हमारी जीत की कामना करती माँ ऐसे पलों में खुद बच्ची बन …
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मुझे प्रेम चाहिए | नीलेश रघुवंशी मुझे प्रेम चाहिए घनघोर बारिश-सा । कड़कती धूप में घनी छाँव-सा ठिठुरती ठंड में अलाव-सा प्रेम चाहिए मुझे। उग आये पौधों और लबालब नदियों-सा दूर तक पैली दूब उस पर छाई ओस की बुँदों सा । काले बादलों में छिपा चाँद सूरज की पहली किरण-सा प्रेम चाहिए । खिला-खिला लाल गुलाब-सा कुनमुनाती हँसी-सा अँधेरे में टिमटिमाती रोशनी-सा प्रेम …
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स्त्री | सुशीला टाकभौरे एक स्त्री जब भी कोई कोशिश करती है लिखने की बोलने की समझने की सदा भयभीत-सी रहती है मानो पहरेदारी करता हुआ कोई सिर पर सवार हो पहरेदार जैसे एक मज़दूर औरत के लिए ठेेकेदार या खरीदी संपत्ति के लिए चौकीदार वह सोचती है लिखते समय कलम को झुकाकर बोलते समय बात को संभाल ले और समझने के लिए सबके दृष्टिकोण से देखे क्योंकि वह एक स्त्री है!…
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मरने की फ़ुरसत | अनामिका ईसा मसीह औरत नहीं थे वरना मासिक धर्म ग्यारह बरस की उमर से उनको ठिठकाए ही रखता देवालय के बाहर! बेथलेहम और यरूशलम के बीच कठिन सफ़र में उनके हो जाते कई तो बलात्कार और उनके दुधमुँहे बच्चे चालीस दिन और चालीस रातें जब काटते सड़क पर, भूख से बिलबिलाकर मरते एक-एक कर— ईसा को फ़ुरसत नहीं मिलती सूली पर चढ़ जाने की भी!…
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कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते | सलमान अख़्तर कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता तुम दूर हो मुझसे तो सदा क्यों नहीं देते बाहर की हवाओं का अगर ख़ौफ़ है इतना जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देतेOleh Nayi Dhara Radio
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अनुपस्थित-उपस्थित | राजेश जोशी मैं अक्सर अपनी चाबियाँ खो देता हूँ छाता मैं कहीं छोड़ आता हूँ और तर-ब-तर होकर घर लौटता हूँ अपना चश्मा तो मैं कई बार खो चुका हूँ पता नहीं किसके हाथ लगी होंगी वे चीजें किसी न किसी को कभी न कभी तो मिलती ही होंगी वे तमाम चीज़ें जिन्हें हम कहीं न कहीं भूल आए छूटी हुई हर एक चीज़ तो किसी के काम नहीं आती कभी भी लेकिन कोई न को…
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दादा की तस्वीर | मंगलेश डबराल दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक़ नहीं था या उन्हें समय नहीं मिला उनकी सिर्फ़ एक तस्वीर गन्दी पुरानी दीवार पर टँगी है वे शान्त और गम्भीर बैठे हैं। पानी से भरे हुए बादल की तरह दादा के बारे में इतना ही मालूम है कि वे माँगनेवालों को भीख देते थे नींद में बेचैनी से करवट बदलते थे और सुबह उठकर बिस्तर की सिलवटें ठीक करते थे मै…
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अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है | रमानाथ अवस्थी तुम्हारी चाँंदनी का क्या करूँ मैं अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है। किसी गुमनाम के दुख-सा अनजाना है सफ़र मेरा पहाड़ी शाम-सा तुमने मुझे वीरान में घेरा तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ समूचा ही शहर मेरे लिए है थका बादल किसी सौदामिनी के साथ सोता है। मगर इनसान थकने पर बड़ा लाचार होता है। गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं…
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नया सच रचने | नंदकिशोर आचार्य पत्तों का झर जाना शिशिर नहीं जड़ों में यह सपनों की कसमसाहट है- अपने लिए नया सच रचने की ख़ातिर- झूठ हो जाता है जो खुद झर जाता है।Oleh Nayi Dhara Radio
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आत्मा | अंजू शर्मा मैं सिर्फ एक देह नहीं हूँ, देह के पिंजरे में कैद एक मुक्ति की कामना में लीन आत्मा हूँ, नृत्यरत हूँ निरंतर, बांधे हुए सलीके के घुँघरू, लौटा सकती हूँ मैं अब देवदूत को भी मेरे स्वर्ग की रचना मैं खुद करुँगी, मैं बेअसर हूँ किसी भी परिवर्तन से, उम्र के साथ कल पिंजरा तब्दील हो जायेगा झुर्रियों से भरे एक जर्जर खंडहर में, पर मैं उतार कर, …
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लड़की | अंजू शर्मा एक दिन समटते हुए अपने खालीपन को मैंने ढूँढा था उस लड़की को, जो भागती थी तितलियों के पीछे सँभालते हुए अपने दुपट्टे को फिर खो जाया करती थी किताबों के पीछे, गुनगुनाते हुए ग़ालिब की कोई ग़ज़ल अक्सर मिल जाती थी वो लाईब्रेरी में, कभी पाई जाती थी घर के बरामदे में बतियाते हुए प्रेमचंद और शेक्सपियर से, कभी बारिश में तलते पकौड़ों को छोड़कर…
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तुमने इस तालाब में | दुष्यंत कुमार तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं। तुम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत, तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठाकर फेंक दीं। जाने कैसी उँगलियाँ हैं जाने क्या अंदाज़ हैं, तुमने पत्तों को छुआ था जड़ हिलाकर फेंक दीं। इस अहाते के अँधेरे में धुआँ-सा भर गया, तुमने जलती लकड़ियाँ शायद बुझाक…
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जंतर-मंतर | अरुणाभ सौरभ लाल - दीवारों और झरोखे पर सरसराते दिन में सीढ़ी-सीढ़ी नाप रहे हो जंतर-मतर पर बोल कबूतर मैंना बोली फुदक-फुदककर बड़ी जालिम है। जंतर-मंतर मॉँगन से कछू मिले ना हियाँ बताओ किधर चले मियाँ पूछ उठाकर भगी गिलहरी कौवा बोला काँव - काँव लोट चलो अब अपने गाँव टिट्ही बोलीं टीं.टीं. राजा मंत्री छी...छी घर - घर माँग रहे वोट और नए- पुराने नोट…
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पढ़िए गीता | रघुवीर सहाय पढ़िए गीता बनिए सीता फिर इन सब में लगा पलीता किसी मूर्ख की हो परिणीता निज घर-बार बसाइए होंय कैँटीली आँखें गीली लकड़ी सीली, तबियत ढीली घर की सबसे बड़ी पतीली भर कर भात पसाइएOleh Nayi Dhara Radio
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साथी | केदारनाथ अग्रवाल झूठ नहीं सच होगा साथी। गढ़ने को जो चाहे गढ़ ले मढ़ने को जो चाहे मढ़ ले शासन के सी रूप बदल ले राम बना रावण सा चल ले झूठ नहीं सच होगा साथी! करने को जो चाहे कर ले चलनी पर चढ़ सागर तर ले चिउँटी पर चढ़ चाँद पकड़ ले लड़ ले ऐटम बम से लड़ ले झूठ नहीं सच होगा साथी!Oleh Nayi Dhara Radio
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मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था | अंजुम रहबर मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी …
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पूछ रहे हो क्या अभाव है | शैलेन्द्र पूछ रहे हो क्या अभाव है तन है केवल, प्राण कहाँ है ? डूबा-डूबा सा अन्तर है यह बिखरी-सी भाव लहर है, अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन मेरे जीवन के गान कहाँ हैं? मेरी अभिलाषाएँ अनगिन पूरी होंगी ? यही है कठिन, जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ - ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ? लाख परायों से परिचित है, मेल-मोहब्बत का अभिनय है, जिनके बिन जग सू…
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राख | अरुण कमल शायद यह रुक जाता सही साइत पर बोला गया शब्द सही वक्त पर कन्धे पर रखा हाथ सही समय किसी मोड़ पर इंतज़ार शायद रुक जाती मौत ओफ! बार बार लगता है मैंने जैसे उसे ठीक से पकड़ा नहीं गिरा वह छूट कर मेरी गोद से किधर था मेरा ध्यान मैं कहाँ था अचानक आता है अँधेरा अचानक घास में फतिंगों की हलचल अचानक कोई फूल झड़ता है और पकने लगता है फल मैंने वे सारे …
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तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए | अंजुम रहबर तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर…
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तुम्हारी जाति क्या है? | कुमार अंबुज तुम्हारी जाति क्या है कुमार अंबुज? तुम किस-किस के हाथ का खाना खा सकते हो और पी सकते हो किसके हाथ का पानी चुनाव में देते हो किस समुदाय को वोट ऑफ़िस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें जन्मपत्री में लिखा है कौन सा गोत्र और कहां ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन-बेटियां बताओ अपना धर्म और वंशावली के बारे में किस…
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अँकुर | इब्बार रब्बी अँकुर जब सिर उठाता है ज़मीन की छत फोड़ गिराता है वह जब अन्धेरे में अंगड़ाता है मिट्टी का कलेजा फट जाता है हरी छतरियों की तन जाती है कतार छापामारों के दस्ते सज जाते हैं पाँत के पाँत नई हो या पुरानी वह हर ज़मीन काटता है हरा सिर हिलाता है नन्हा धड़ तानता है अँकुर आशा का रँग जमाता है।…
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बच्चा | रामदरश मिश्रा हम बच्चे से खेलते हैं। हम बच्चे की आँखों में झाँकते हैं। वह हमारी आँखों में झाँकता है हमारी आँखों में उसकी आँखों की मासूम परछाइयाँ गिरती हैं और उसकी आँखों में हमारी आँखों के काँटेदार जंगल। उसकी आँखें धीरे-धीरे काँटों का जंगल बनती चली जाती हैं और हम गर्व से कहते हैं- बच्चा बड़ा हो रहा है।…
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पिता | विनय कुमार सिंह ख़ामोशी से सो रहे पिता की फैली खुरदुरी हथेली को छूकर देखा उन हथेलियों की रेखाएं लगभग अदृश्य हो चली थीं फिर उन हथेलियों को देखते समय नज़र अपनी हथेली पर पड़ी और एहसास हुआ न जाने कब उन्होंने अपनी क़िस्मत की लकीरों को चुपचाप मेरी हथेली में रोप दिया था अपनी ओर से कुछ और जोड़करOleh Nayi Dhara Radio
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मन के झील में | शशिप्रभा तिवारी आज फिर तुम्हारे मन के झील की परिक्रमा कर रही हूं धीरे-धीरे यादों की पगडंडी पर गुज़रते हुए वह पीपल का पुराना पेड़ याद आया उसके छांव में बैठ कर मुझसे बहुत सी बातें तुम करते थे मेरे कानों में बहुत कुछ कह जाते जो नज़रें मिला कर नहीं कह पाते थे क्या करूं गोविन्द! बहुत रोकती हूं मन कहा नहीं मानता तुम द्वारका वासी मैं बरसाने …
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लौटती सभ्यताएँ | अंजना टंडन विश्वास की गर्दन प्रायः लटकती है संदेह की कीलों पर, “कहीं कुछ तो है” का भाव दरअसल दिमाग की दबी आवाज़ है जो अक्सर छोड़ देती है प्रशंसा में भी कितनी खाली ध्वनियाँ, संदेह के कान आत्ममुग्धता की रूई से बंद है आँखें ऊगी हैं पूरी देह पर और खून में है दुनियावी अट्टाहास , कंठ भर तंज दिल के मर्म को कभी जान नहीं पाएगा, मृत्यु बाद ही…
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तुम औरत हो | पारुल चंद्रा क्योंकि किसी ने कहा है, कि बहुत बोलती हो, तो चुप हो जाना तुम उन सबके लिए... ख़ामोशियों से खेलना और अंधेरों में खो जाना, समेट लेना अपनी ख़्वाहिशें, और कैद हो जाना अपने ही जिस्म में… क्योंकि तुम तो तुम हो ही नहीं… क्योंकि तुम्हारा तो कोई वजूद नहीं... क्योंकि किसी के आने की उम्मीद पर आयी एक नाउम्मीदी हो तुम.. बोझ समझी जाती हो, …
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ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी बदल सकता है धरती का रंग बदल सकता है चट्टानों का रूप बदल सकती है नदियों की दिशा बदल सकती है मौसम की गति ईश्वर तुम्हारी मदद चाहता है। अकेले नहीं उठा सकता वह इतना सारा बोझ।Oleh Nayi Dhara Radio
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मेरी बेटी | इब्बार रब्बी मेरी बेटी बनती है मैडम बच्चों को डाँटती जो दीवार है फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर नाक पर रख चश्मा सरकाती (जो वहाँ नहीं है) मोहन कुमार शैलेश सुप्रिया कनक को डाँटती ख़ामोश रहो चीख़ती डपटती कमरे में चक्कर लगाती है हाथ पीछे बांधे अकड़ कर फ़्रॉक के कोने को साड़ी की तरह सम्हालती कॉपियाँ जाँचती वेरी पुअर गुड कभी वर्क हार्ड के फू…
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मुक्ति | केदारनाथ सिंह मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला मैं लिखने बैठ गया हूँ मैं लिखना चाहता हूँ 'पेड़' यह जानते हुए कि लिखना पेड़ हो जाना है मैं लिखना चाहती हूँ ‘पानी’ 'आदमी' 'आदमी' मैं लिखना चाहता हूँ एक बच्चे का हाथ एक स्त्री का चेहरा मैं पूरी ताक़त के साथ शब्दों को फेंकना चाहता हूँ आदमी की तरफ़ यह जानते हुए कि आदमी का कुछ नहीं होगा में भरी सड़क …
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हम लौट जाएंगे | शशिप्रभा तिवारी कितने रात जागकर हमने तुमने मिलकर सपना बुना था कभी इस नीम की डाल पर बैठ कभी उस मंदिर कंगूरे पर बैठ कभी तालाब के किनारे बैठ कभी कुएं के जगत पर बैठ बहुत सी कहानियां मैं सुनाती थी तुम्हें ताकि उन कहानियों में से कुछ अलग कहानी तुम लिख सको और अपनी तकदीर बदल डालो कितने रात जागकर हमने तुमने मिलकर सपना बुना था साथ तुम्हारे हम…
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